बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की ईमानदारी का ऐतिहासिक प्रसंग:
बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की ईमानदारी का ऐतिहासिक प्रसंग:
1943 में बाबसाहेब श्रम मंत्री थे और पी डब्ल्यू डी विभाग भी उन्हीं के पास था। डॉ अम्बेडकर के इस विभाग का प्रमुख बनने से पहले इस विभाग का सालाना बजट एक करोड़ रूपये का था जो डॉ अम्बेडकर के प्रमुख बनने के बाद पचास करोड़ रूपये सालाना का हो गया था क्योंकि दिल्ली का विकास करना था और डॉ अम्बेडकर को इसलिए मुखिया बनाया गया था क्योंकि वह एक, शिक्षित, बुद्धिमान, ईमानदार और उच्च चरित्र के आदरणीय व्यक्ति थे। 30-6-1944 को दिल्ली के एक बड़े करोड़पति ठेकेदार के पुत्र बाबासाहेब के बेटे यशवंत राव से दिल्ली में मिले और उनसे कहा कि यदि वह डॉ अम्बेडकर को सरकारी ठेके दिलवाने के लिए मनवा ले तो वह यशवंत को उन ठेकों में भागिदार बना लेंगे और 25%-50% तक कमीशन देंगे। माननीय यशवंत मान गए। उसी शाम जब डॉ अम्बेडकर को यह बात पता चली तो वह अपने पुत्र पर इतने आग बबूल हो गए कि की यशवंत को उसी रात यह कहते हुए वापिस बॉम्बे (मुंबई) भिजवा दिया कि : " मैं यहाँ पर केवल सारे अछूत (दलित) समाज के उद्धार के ध्येय को लेकर आया हूँ। अपनी संतान को पालने नहीं आया हूँ। ऐसे लोभ-लालच मुझे मेरे ध्येय से डिगा नहीं सकते।" डॉ अम्बेडकर के पुत्र को उसी रात भूखे पेट ही बॉम्बे के लिए रवाना होना पड़ा। - (यह घटना पुस्तक 'युगपुरुष बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर' में लिखी है।
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