हिन्दू कोड बिल सितम्बर 1951
बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर, अकेले चले हिन्दू कोड बिल सितम्बर 1951 में संसद में पेश किया गया ब्राम्हणो के बड़े-बड़े नेता जिसमे सरदार वल्ल्भ भाई पटेल ने डॉ. आम्बेडकर के खिलाप जन आक्रोश तैयार किया, संसद के चारो और पोलिस खड़ी थी, उत्तेजित वल्ल्भभाई पटेल, डॉ. मुखर्जी कि सहयोगी महिलाये सवेरे से ही डॉ. आम्बेडकर का विरोध कर रही थी और दूसरी ओर डॉ. आम्बेडकर को धमकाने के लिए बंदुक कि गोलियो कि आवाज संसद के परिसर में गूंज रही थी तभी डॉ. आम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल पास करने के लिए फौलादी ताकत लगाईं और डंके कि चोट पर ब्राम्हणवाद के देवीदेवता राम औऱ सीता के काल्पनिक पाडखंड का खुले आम संसद के भितर चुनौती देकर सच्चाई को रखा यह उनकी फौलादी ताकत औऱ विद्धवता थी! डॉ. आंबेडकर को नाही वोट खिसकने कि चिंता थी और नाही बढ़ने कि उनका एक मात्र लक्ष ब्राम्हणवाद कि जातियो में जकडी मानसकिता में बदलाव और यह बदलाव 1956 में करने सफल भी हुए! महिलाओं के हित में यह बिल पास नही हुंऑ इसके लिये वल्ल्भभाई पटेल एवं डॉ. मुखर्जी दोषी है!
बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर के पास आधुनिक संसाधन नहीं थे, नाही उनके पास मोबाइल था, नाही उनके पास आधुनिक लैपटॉप था, नाही उनके पास कम्पुटर था, नाही उनके पास करोड़ो कि कोठी थी, नाही उनके पत्नी के पास आधुनिक जेवरात थे और नाही आलिशान गाडी थी, नाही उस समय समाज सामाजिक-आर्थिक दृष्टी से समृद्ध था! तभी ब्राम्हणवाद को अपने विद्धवता के बल पर चुनौतिया देकर जो दाव वह लगाते थे वह डॉव जीतकर ही रहते थे, यह उनकी विद्धवता थी! उन्हें देश और देश के लोगो के हित में जो करना था वह किया और यह दीप्त युग पुरुष सदेव विश्व मानवजगत के मन-मानस में चिरविस्मृत रहेंगा!
बाबासाहेब डॉ.आम्बेडकर,18 धंटे पढ़ाई और कार्य करते थे वह भी थकी हुई उम्र में! बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर अकारण नही पड़ते थे और नाही अकारण कार्य करते थे!बल्कि यह कार्य मानवजगत के सुख:शांति के लिए था! आज हमारी पढ़ाई और हम मात्र एकेडेमिक तक सिमित होकर सिमटे है! विश्व इतिहास को पड़लो बुद्ध एक पहर (चार घंटे का एक पहर) आराम करते थे, सम्राट अशोक भी एक पहर आराम करते थे! डॉ. आम्बेडकर भी एक पहर (चार घंटे) आराम करते थे! बुद्ध औऱ सम्राट अशोक के बाद 18 घंटे समाज के लिए कार्य करने वाला दीप्त युग पुरुष अगर कोई है वह मात्र डॉ.आम्बेडकर है! यह शिख हमारे राजनेताओ और समाज के हर एक वर्ग के लिए महत्वपूर्ण है!
बाबासाहबे डॉ. आम्बेडकर के अनुयायि सुझाव जादातर यही देते है कि क्या आपने बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर, यह किताब पड़ी वो किताब पड़ी और जब डॉ.आम्बेडकर द्वारा लिखित किताबो को लेकर कुछ सवाल करू तब इन्हे यह भी पता नहीं होता कि यह वक्तव्य किस किताब का है! कभी शांति से डॉ. आम्बेडकर द्वारा लिखित 'बुद्ध और उनका धम्म' इस ग्रन्थ के पुष्ट क्रमांक 489 में जो चार सार्वभौमिक प्रतिज्ञा का उल्लेख किया है इसे प्रतिक्रिया करने से पहले पडलो, वास्तविक इन प्रतिज्ञाओ का आधार महायान बुद्धिज्म का सुरंगम सूत्र है, इसलिए बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर ने बुद्धिज्म के किसी भी पथ कि आलोचना नहीं कि है!
इसी प्रकार बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर के अनुयायिओं को कभी पूछो कि बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर द्वारा लिखित क्रान्ति और प्रतिक्रांति के किताब के अनुसार भारत में दलित या अछुत कोण है ? तब इन्हे लगता है बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर के ही अनुयायी दलित और अछुत है बल्कि बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर के द्वारा लिखित क्रान्ति और प्रतिक्रांति के किताब के अनुसार ब्राम्हणवर्ग के लोग 'दलित और अछूत" है! आज तक आम्बेडकरवादी राजनेता, सामाजिक या धार्मिक नेताओं ने बाबासाहेब डॉ.आम्बेडकर के किताब का संधर्भ देकर जनता के सामने यह कहने की हिम्मत नही कि है कि 'मौर्य शासन काल में ब्राम्हणवर्ग के लोग 'दलित और अछूत' थे!
लेकिन इसी किताब को लेकर बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर के अनुयायी शेखी बहोत मारते है! ब्राम्हणवर्ग के लोग मौर्य शासनकाल में दलित थे यह कहने और लिखने कि फौलादी ताकत और विध्वता मात्र डॉ. आम्बेडकर में ही थी ! डॉ. आम्बेडकर कि फौलाद की शक्ति की ताकत आज के आम्बेडकरवादियो में नहीं है इसलिए यह अपने आप को हर जगह ब्राम्हणो का 'दलित और अछूत' का कलंक लेकर घूमते है और यही संस्कार आने वाली पीढ़ियों देते है...
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