समाज के निर्माण के लिये
संपूर्ण मानव आज जातिवाद, वंशवाद, आदिवासियो के साथ हो रहा भेदभाव, स्त्री-पुरुष भेदभाव, धर्मो में अधार्मिकता, आर्थिक शोषण, पर्यावरण का शोषण, धार्मिक एंव सांस्कृतिक संघर्ष एंव विज्ञान तंत्रज्ञान की अमानवीय इच्छाए इन दुःखो से ग्रसित है. मानव के यह नौ दुःख है. उनमें कुछ नये और कुछ पहले से ही निर्माण हुए दुःख है. यदि इन दुःखो का अंत करना है. जो दुःख धरती पर रह रहे 700 करोड ( 7 Billion ) लोंगो के मानव गरिमा, मानव अधिकार, सुख, शांति और उनके उत्कर्ष को नकारते है. तो ऐसे दुःखो का अन्त केवल "आंबेडकरवाद की वैश्विक विचारधारा" के आधारपर "नई मानव व्यवस्था" करके ही हो सकता है. इसके लिए समता-स्वतंत्रता-बंधुता इन "तीन सुत्रो" के आधारपर दुनिया की "आर्थिक एंव सामाजिक व्यवस्था" का पुनर्निर्माण करना होगा. जहा "मानव और नैतिकता" यह केंद्र है और "मानव कल्याण" उसका मकसद है. ऐसे "धम्म" के आधार से "सच्चाई के राज" को प्रस्थापित करना होगा.
समाज के निर्माण के लिये "चार बदलाव" लाने की जरुरत है. वह चार बदलाव है, "वैचारिक परिवर्तन" (Change in Thinking/Thoughts), "आचार परिवर्तन" (Change in Conduct), "मानसिक परिवर्तन" (Notional/Mental Change) और "व्यवस्था परिवर्तन" (Change in orders/Structural or Institutional Change)
केवल मनुष्य (स्त्री/पुरुष) के बीच सही संबंध से ही मानव समाज का पुनर्निर्माण करके "नई मानव व्यवस्था" का निर्माण होगा. केवल ऐसी व्यवस्था में ही मनुष्य शांती, उत्कर्ष, तरक्की एंव गरिमापूर्ण जीवन जी सकेगा. ऐसी व्यवस्था में ही "मानव अधिकारो" (Human Rights) को यथार्थ बनाया जा सकता है. ऐसी व्यवस्था में ही समता-स्वतंत्रता-बंधुता इन तीन सुत्रो के आधारपर राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक लोकतंत्र को पूर्णतः लाया जा सकता है. ऐसी व्यवस्था में ही वर्ग संघर्ष, संस्कृति, धर्म, राष्ट्र एंव सभ्यता के संघर्ष समाप्त होंगे. ऐसी "नई मानव व्यवस्था" के आधारपर आनेवाले कई पीढीयो के लिये "मानवतावादी सभ्यता" (Humanitarian Civilisation) का निर्माण होगा.
राष्ट्रीय समाज, वर्ग एंव सांस्कृतिक समुदाय के लिये "महानतम मानवतावादी क्रांतिकारी डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के "विचार एंव आंदोलन" (Thoughts & Action) द्वारा ही "नई मानव व्यवस्था" (New Human Order) का निर्माण हो सकता है. मनुष्य यह पर्यावरण की परिणीती है. (Man is a product of his environment). वैसेही मानव यह इतिहास का निर्माता भी है. (Man is a maker of history) इसलिये उपरोक्त व्यवस्था का निर्माण करने के लिये हमें मानव के पर्यावरण में बदलाव को लाना होगा. सही वातावरण (Socio-psychological environment) का निर्माण करना होगा. "नई मानव व्यवस्था" के लिये "वैश्विक सुशासन" को प्राप्त करना होगा. उपरोक्त सभी बातो को केवल शिक्षित बनो ! संघर्ष करो !! संगठित बनो !!! (Educate ! Agitate !! Organise !!!) इस प्रक्रिया से प्राप्त किया जा सकता है. यह "मानव सभ्यता" की "ऐतिहासिक जरुरत" (आवश्यकता) है जिसे केवल आंबेडकरवाद से ही पूर्ण किया जा सकता है. मानव यदि उसके संकट (peril) को टालना चाहता है तो आंबेडकरीजम के इन महत्त्वपूर्ण पहलूओ को अनदेखा नही किया जा सकता.
डॉ. बी. आर. आंबेडकर का जीवन एंव महानतम मानवतावादी क्रांतिकारी आंदोलन - एक कालानुक्रम
Vijay Mankar
National Organiser (All India Mulnivasi Bahujan Samaj Central Sangh"
National Organiser (All India Mulnivasi Bahujan Samaj Central Sangh"
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